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मुंबई मे 2 नवम्बर 2008 को आतंकवादी हमले के बाद जब पी. चिदम्बरम ने गृह मंत्रालय की बागडोर संभाली थी तो देश को यह आभास होने लगा था की अब आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ हो जाएगी। इस विषय मे गृह मंत्री ने ठोस और सकारात्मक कदम भी उठाए । जिसमे प्रमुख रूप से राज्य सरकारों के पुलिस बल मे वृद्धि तथा आधुनिकरण हेतु दिशा निर्देश जारी किए, अधिसूचना के लिए गठित मल्टी एजेंसी सेंटर को सक्रिय किया गया । कुछ बड़े शहरों मे नेशनल सिक्युर्टी गार्ड की इकाइयां गठित की गईं । पाकिस्तान को उन्होने स्पष्ट शब्दों मे चेतावनी दी की यदि पुनः मुंबई जैसी घटना हुई तो जबरदस्त जवाबी करवाही की जाएगी । इसके बाद न जाने किन कारणो से गृहमंत्रालय की गति मे शिथिलता आने लगी । शायद कांग्रेस का अंतविरोध प्रमुख कारण है , दिग्विजया सिंह ने खुले तौर पर उनकी नक्सल नीतियों की आलोचना की । 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर भी चिदम्बरम विवादों मे हैं । इन तमाम कारणो की वजह से गृहमंत्री अपने आप को असहाय पा रहे हैं जिसका परिणाम है की महत्वपूर्ण फैसले लेने मे भी गृहमंत्री अक्षम हैं । आंतरिक सुरक्षा को लेकर चार क्षेत्रों मे सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं । वो हैं – आतंकवाद, कश्मीर, पूर्वोत्तर और माओवादी हिंसा। जाहिर है की हम आतंकवादी घटनाओं पर रोक नहीं लगा पा रहे हैं । सरकार की अस्पष्ट नीतियों के चलते सुरक्षा बल भी ढीले पड़ गए हैं फलस्वरूप स्थित यथावत बनी हुई है ।
हरमंगल सिंह
फ़ैज़ाबाद
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