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लालकृष्ण आडवाणी पुनः एक बार जन चेतना के माध्यम से रथ यात्रा पर सवार
होकर मंज़िले मकसूद की ओर निकल पड़े हैं, उनके कुछ अकाट्य स्लोगंन ( नारे) हैं – भ्रष्टाचार की वजह से अराजकता का माहौल है, देश का प्रधान मंत्री सबसे कमज़ोर है , तथा सरकार भ्रष्टाचारियों की बदौलत देश चलना चाहती है अक्षरश: सत्य है, जिसे देश और दुनिया सभी जानती है । किन्तु आडवाणी जी इन्ही स्लोगन के माध्यम से अपना आंतरिक दर्द और बेचनी भी व्यक्त कर रहे हैं, उनकी सबसे बड़ी पीड़ा है प्रधानमंत्री पद की लालसा । पार्टी यह मान कर चल रही है की आडवाणी जी एक वरिष्ठ और सम्मानित नेता हैं हो सकता है की अंतिम बार इस रथ के बहाने कुर्सी प्राप्त ही हो जाए, ऐसा सोचना पार्टी की भूल होगी , क्यूंकी यदि वरिष्ठता सर्वश्रेष्ठ पैमाना है तो जन मानस की भावनाए भी सर्वोपरि हैं । ऐसा आभास होता है की पार्टी मे ही प्रधान मंत्री पद को लेकर ही एक राय नहीं है , दूसरी बात देश का जनमानस नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद का प्रबल दावेदार समझता है अतः पार्टी को वरिष्ठता के आधार पर नहीं बल्कि जनमानस की भावनाओ के आधार पर निर्णय लेना होगा तभी सफलता प्राप्त हो सकती है आडवाणी जी का इस समय ऐसा हाल है की
“यह मत पूंछों की दर्द किधर होता , एक जगह हो तो बताऊँ की इधर होता है” ।
हरमंगल सिंह
फ़ैज़ाबाद
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