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दानवीरों का देश

Harmangal Singh
Harmangal Singh
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हमारा देश दानवीरों का देश है यंहा गोदान , भूदान , क्ष्रमदान , कन्यादान , रक्तदान और मतदान से लेकर अनुदान तक होता है। दानियों के खानदान इस दुनियाँ के पवन भूमि के कण कण मे विद्यमान हैं । यंहा अंधे तक नेत्रदान करने से नहीं चूकते हैं । बड़े से बड़े डकैतों को क्षमादान और छोटे से छोटे बकैतों को अभयदान देना हमारी परंपरा है । हमरे देश मे एक से एक बड़े दानी हुए हैं । शिव , दधिची , रतिदेव , हरिश्चंद्र और कर्ण सब भारत वर्ष की कोख से पैदा हुये हैं और होते रहेंगे । दानियों की लीलाएँ अपरामपार होती है , हमे नेता बनने का शौक चरराया तो जनता से वोट मांगने लगे । वोट मिले तो सरकार भी बना ली । सेवा का अवसर मांगा जनता दानी थी उसने सबको कुछ न कुछ दिया , जब वोट मिल गया , मौका मिल गया तो हमने सरकार चलाने के लिए दूसरे देश से कर्ज मांगा, दूसरे देश से खूब कर्ज मिला तो घी पीने लगे । पीने से हमारा गला बैठ गया । हम फिर पार्टी हाइकामन से टिकट मांग कर चुनाव मे खड़े हो गए । खड़े हुये तो हमने चुनाव खर्च के लिए उद्धोगपतियों से चंदा मांगा । तंत्रिकों से आशीर्वाद मांगा । पुलिस से जन माल की रक्षा के लिए अंगरक्षक मांगे । बूथ कैप्चरिंग के लिए गुंडो से सहयोग मांगा। मतदाताओं से जबरिया उनका मत मांगा । हम जीत गए । हमारी सारी मांगे पूरी हो गयी थी । अब बारी आई सरकार बनाने की। हम अल्पमत मे थे । हमने दूसरी पार्टी से समर्थन मांगा । डर रहे थे कंही नोट के बदले वोट कांड न हो जाए लेकिन यंहा तो इससे बद्दतर स्थित से गुजरना पड़ा । जैसे हमने दूसरी पार्टी से समर्थन मांगा । उन्होने इसके बदले मे हमसे न बताने योग्य बहुत कुछ मांग लिया । हमसे जो मांगा गया हमने समर्थन पाने के लिए सहयोगियों को हर तरह का नैतिक अनैतिक सहयोग प्रदान किया और धम्म से गद्दी पर चढ बैठे । अब हमारी देने की बारी थी हम दान शील हो गए और दानियों की परंपरा मे एक नाम और जुड़ गया। हम रेवड़ी बटने लगे । मगर वाह री किस्मत । मांग ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा । अभी तक हम मांगते थे । अब लोग बाग हम से मांगने लगे । सरकारी कर्मचारी हमसे वेतन मांगने लगे । अधिकारी मन चाहिए पोस्टिंग मांगने लगे । बेरोजगार काम मांगने लगे । किसान पानी और बिजली मागने लगे । विधायक मंत्रिमंडल मे स्थान मांगने लगे । चुनाव आयोग चुनाव के खर्च का हिसाब मांगने लगे । आयकर विभाग रिट्रन मागने लगा । विपछी इस्तीफा मांगने लगे । आखिर हम किस किस की मांगे भरते । लोगो ने हमारे सिर मे इतनी मांगे भर दी की हमारी सरकार का सुहारा सिंदूर ही पुंछ गया । लेकिन हमने भी कच्ची गोलियां नहीं खाईं थीं , घी पीना और घी जुटाने के लिए घोटाला करना नहीं छोड़ा । हमने घोटाले का अवसर जो मांगा था , जनता भी बड़ी दानशील की उसने दिल खोल कर दिया, मागने मे हमारा भी जवाब नहीं था, और अगर आवश्यकता पड़ती तो हम शराब तक दान मे देकर वोट दान मे प्राप्त कर लेते । भले ही शराब एकाध बार जहरीली ही क्यूँ ना हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता , भाई चुनाव भी तो मौत मांगता है । दस-पाँच मौते अगर नहीं हुई तो फिर चुनाव कैसा ? एक बात तो पक्की हो गयी की दानी वही होते हैं जंहा मांगने वाले होते हैं । जब मांगने वाले ही नहीं होंगे तो दानी गण क्या अपना दान भाड़ मे झोंकेंगे ।

हरमंगल सिंह
फ़ैज़ाबाद

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