Menu
blogid : 5676 postid : 112

काक चेष्टा,बको ध्यानम

Harmangal Singh
Harmangal Singh
  • 58 Posts
  • 40 Comments

विद्यार्थियों के लिए एक श्लोक है :-
काक चेष्टा,बको ध्यानम,श्वान निद्रा तथैव च:
श्वल्पाहारी गृह त्यागी विद्यार्थिति पंच लक्षणम :
ऐसा लगता है ये पंक्तियाँ विद्यार्थियों से ज्यादा नेताओं पर सटीक बैठती हैं। इस पूरे प्रकरण मे काकचेष्टा और बकोध्यानम की ही भरमार रहती है, आज की स्थित यह है की नेताओं मे विश्वास का संकट पैदा हो गया है, बकोध्यानम केवल चोरी, भ्रष्टाचार, अनरगल अलाप,महगाई पर ही टिका है। जाती धर्म और समीकरणों का जोड़ तोड़ जनता के सामने चलता रहता है और वह सब कुछ देखती रहती है झूठ ज़ोर ज़ोर से बोले जा रहे हैं ताकि वे सच लगने लगें, दूसरों के किए को मिटाने और अपने खाते मे दूसरों के कामो की फेहरिस्त दर्ज करके वाहवही लूटते रहते हैं ऐसी तरकीबें आपको अंजाम से नहीं बचा सकती हैं । नदी को हजारों मील तक रास्ते बदल बदल कर बहने के बाद आखिर समुद्र मे मिलना ही पड़ता है उसे कोई भी तरकीब विलय से नहीं बचा पाती, जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, आपको बचाती एक ही चीज है, वह है आचरण , भद्रता। भलमनसाहत किसी भी नाम से जानी जाए , पर इसका कोई विकल्प नहीं है आज देश कुछ नेताओ या कहें की इस सरकार के गंदे अचरणों की बदौलत देश संक्रमण काल से गुजर रहा है । रावण ने हर तरह की तरक्की कर ली तो उसका मन हुआ की कोई उसकी इस उपलब्धियों को सराहे। रावण ने अनुनय विनय कर के एक मुनि को राजी कर लिया , मुनि ने महल से लेकर विज्ञानशाला, अस्त्रशाला , चिकित्सा शाला आदि देखने के बाद कहा की तुम्हारे यंहा बड़ी तरक्की हुई है लेकिन यह सब कुछ नष्ट हो जाने वाला है , रावण ने आश्चर्य से पूंछा क्यूँ मुनिवर? मुनि का उत्तर था क्यूंकी तुम्हारे यंहा “आचरणशाला” नहीं है ।

हरमंगल सिंह
फ़ैज़ाबाद

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh