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अन्ना हज़ारे के आंदोलन मे व्यापक जानाक्रोश के मंच को संबल प्रदान किया है, तजुब्ब नहीं है की केन्द्रीय सत्ता इस साधारण सी बात को नहीं समझ पा रही है। अन्ना का आंदोलन मंगलकारी तथा लोक शक्ति का प्रतीक बन गया है , जब की सरकार भ्रष्टाचार और सत्तासंस्थान का चेहरा मात्र है, संविधान की प्रस्तावना हम भारत के लोगो से सुरू होती है और अन्ना हम भारत के लोगो के प्रतिनिधि बन चुके हैं। सत्ता की भूमिका बहुमत के सवैधानिक शासन से सुरू होती है, लेकिन यंहा भ्रष्टाचार की सत्ता है और सत्ता का भ्रष्टाचार है। जैसा की सर्वविदित है की अभूतपूर्व ही इतिहास मे स्थान पता है अन्ना हज़ारे का आंदोलन वास्तव मे अभूतपूर्व है अन्ना ने यह प्रमाण दे दिया है की राजनीतिक दलतंत्र के मुक़ाबले भारतीय जनतंत्र जायदा मजबूत और कारगर है। क्यूंकी जनता ने दलतंत्र को सत्तावादी पाया जिससे राजनीत की विश्वसनीयता खतम हो गयी है और सार्वजनिक जीवन मे एक शून्य सा पैदा हो गया है, इस शून्य को मारने का काम एक सरल, निष्कपट एवं ईमानदार गांधीवादी अन्ना हज़ारे ने किया। अन्ना का जन लोकपाल बिल कितना प्रभावी होगा, क्या काम करेगा ? तथा देश का भ्रष्टाचार से मुक्ता होना तो बाद की बात है लेकिन यह यथार्थ है की अन्ना ने देश के कोने कोने मे “राष्ट्र सर्वोपरिता” का भाव जगाया है उन्होने देश के लिए ही जान की बाजी लगाई जिसका परिणाम सामने है, ऐसे महापुरुष को देश का वंदन एवं अभिनंदन है । अहम प्रश्न यह हो सकता है की क्या राष्ट्रव्यापी जनउबाल का कारण जन लोकपाल बिल की माग ही है ? इसमे कोई शक नहीं कि जन लोकपाल बिल ही इस आंदोलन की माग है लेकिन मूलभूत कारण अन्य कई हो सकते हैं, स्वाधीन भारत के 64वें वर्ष मे भ्रष्टाचार पंख फैलाकर उड़ा है और संप्रग सरकार ने इसे संस्थागत स्थायित्व प्रदान किया है , जनमानस लूटा है, संवैधानिक संस्थाओं कि शक्ति घाटी है । अन्ना हज़ारे के जनलोकपाल बिल ने आम आदमी तथा देश को एक नई ऊर्जा प्रदान करने का काम किया है ।
हरमंगल सिंह
फ़ैज़ाबाद
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