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जनमत

Harmangal Singh
Harmangal Singh
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वास्तव मे अन्ना हज़ारे जी एक ऐसे चरित्र हैं जिसमे बच्चे , बूढ़े , जवान, किसान, सेवानिवत्र, गरीब, अमीर कहने का मतलब है की हर वर्ग के लोग अन्ना रूपी अहिंसक आंदोलन मे बहते चले जा रहे हैं। संभवतः इसे सार्थक और सकारात्मक अनशन की ताकत कहना गलत न होगा । आज वृद्धावस्था मे पहुँच चुका ये सख्स युवा वर्ग का रोल माडल बन चुका है। हर व्यक्ति अन्ना की इस सम्मोहनी ताकत का कायल बन चुका है, अन्ना के अनशन की यह अद्रश्य शक्ति आज के परिवेश मे एक बहुत बड़ा मुद्दा है।
इतिहास गवाह है की कई जनहित वाले कार्यों और नीतियों को लागू करने के लिए विरोध के ऐसे ही उपायों को अपनाया गया है । इतिहास गवाह है कि ऐसे ही तरीको से जनता को जगाया गया है और बदलाव हुए हैं। यह आंदोलन अनशन से जुड़ा है अतः इसे अंसवैधानिक भी नहीं कहा जा सकता है और ना ही यह अनशन संसदीय व्यवस्था के लिए कोई अड़ंगा या व्यवधान है । यह जन लोकपाल बिल हमारी भावी पीढ़ी की वह स्वर्णिम आजादी है जिसे हम आज महसूस नहीं कर पा रहे हैं। सन 1974 मे जनमानस अच्छे से समझता था की जेपी का मुद्दा और मंसा दोनों सही और ईमानदारी से परिपूर्ण थे जैसा की आज अन्ना के हैं, इसलिए जनमानस अपना सब कुछ अन्ना के कृतित्व-व्यक्तित्व पर न्योछावर को तैयार खड़ी है। किसी व्यक्ति विशेष या नेता अथवा सरकार मे यदि प्रामाणिकता है, तो जनता जनार्दन अपने आप उसकी ओर खींची चली आती है, जैसा की आज अन्ना की प्रामाणिकता को नकारा नहीं जा सकता। उधर सरकार देख कर भी नहीं समझना चाहती है की इतना जन सैलाब इक्कठा है और क्या चाहता है, फिर भी सरकार जनमत संग्रह करना चाहती है। सरकार द्वारा जनमत संग्रह कराना एक घिनौनी साजिश ही नजर आ रहा है , वास्तव मे जनमत संग्रह से समय के साथ साथ भ्रष्टाचारी सरकार चाहती है की समय खिचता रहे और अन्ना दिन ब दिन कमजोर होते रहे और नतीजा टाय-टाय फिस्स हो जाए। इतना बड़ा हुजूम जो सभी समुदायों से जुड़ा है, बच्चे , बूढ़े , जवान, किसान, सेवानिवत्र, गरीब, अमीर, हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आज भी उसी उत्साह तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश लिए खड़े है, क्या अंधी बाहरी सरकार को दिख नहीं रहा है ? इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है जो जनमत संग्रह करा कर समय की बरबादी की जा रही है ? सरकार द्वारा एक और धमकी टीम अन्ना को दी गयी है की “हद न पार करे टीम अन्ना ” पता नहीं सरकार क्या करेगी? हर तरफ से थू थू करा चुकी सरकार अब बंदर-घुड़की पर उतारू हो गयी है। मै समझता हूँ की सरकार का विनाशकारी तंत्र आम आदमी को बर्बाद कर रहा है, संसद सर्वोच्य है लेकिन है तो जनता के द्वारा, तो क्यूँ न जन
लोकपाल बिल पारित हो ? इसे बैठकर भी आपसी सहमत से सुलझाया जा सकता है। सरकार को चाहिए की राष्ट्र की बेहतरी के लिए एक सशक्त्त लोकपाल बिल पारित करें, तथा अपनी बिगड़ी हुई छवि को विश्व सत्तर पर पुन: स्थापित करें । सबसे बड़ा प्रश्न यह है की जब 90% जनता जन लोकपाल के पक्ष मे है मात्र 10% सरकारी बिल का समर्थन करते हैं तो इस स्थित मे सरकार क्यूँ निरर्थक बातें कर रही है, कभी कहेगी की संसद की अवमानना है, कभी कहेगी की हद न पार करें एक तरह से भ्रष्टाचार को समर्थन देना है ।

हरमंगल सिंह
फैजाबाद

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