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सर्वेभवन्तु दुखिन:

Harmangal Singh
Harmangal Singh
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वैसे आज हमारे देश मे “सर्वेभवन्तु सुखिन:” की ही कामना की जाती है, इस दुनिया मे सब सुखी रहें ,सब प्रगति करें , सभी फलें फुले , कोई भी कष्ट मे ना रहे ,सर्वत्र सुख का ही साम्राज्य हो । लेकिन एक तथ्य यह भी है की ऐसा सोचने वाले महानुभावो की संख्या मे लगातार कमी आरही है, और वह दिन दूर नहीं जब ऐसे लोग लुप्तप्राय , दुर्लभ प्राणीयों की श्रेणी मे आ जाएंगे । और ऐसे प्राणियों के दर्शन करने के लिए टिकट लेकर चिड़ियाघर जाना होगा। लेकिन अगर आप दूसरे पहलू पर गौर करे तो “सर्वेभवन्तु दुखिन:” की कामना किसी भी द्रष्टि से गलत नहीं कही जा सकती और इसी मे शायद सबका भला भी है, भाई यदि सभी सुखी हो जाएंगे तो फिर दुखी कौन रहेगा ? और जब कोई दुखी ही नहीं रहेगा तो मंदिर का घंटा कौन बजाएगा ? भगवान की पुजा अर्चना कौन करेगा ? और यदि ऐसा हुआ तब तो पंडे, पुजारियों की फौज बेरोजगार हो जाएगी, उनके सामने खाने के लाले तक पड़ जाएंगे, अभी तो वो लोगो के दुख दर्द का निवारण करके अपना गुजर बसर कर लेते है फिर उनकी सुध लेने वाला कौन होगा ? टैरोकार्ड रीडर, भविष्य वक्ताओं , ज्योतिषाचार्यों, शनि महराज को प्रसन्न करने का उपाय बतलाने वालों का क्या होगा? बिभिन्न प्रकार के लाल,पीले,नीले, पत्थरों को बेंच कर आपका भाग्य चमकाने वाले तथा आपकी ज़िंदगी को सुखी एवं समृद्ध बनाने वाले बेचारों का क्या होगा ? ये बेचारे तरह तरह से आपकी ज़िंदगी को सुखी बनाने के लिए प्रयासरत हैं, कोई टीवी पर आपकी ज़िंदगी संवारने की कोशिश मे लगा है, तो कोई पत्र-पत्रिकाओं मे, तो कोई अपने घर पर ही सेवा प्रदान कर रहा है। और आपकी ज़िंदगी को सुखी करने का जज्बा तो ऐसा है उनमे, की वो आपके घर मे घुस कर भी आपकी ज़िंदगी को सुखी बनाते हैं।आप अपनी ज़िंदगी सुखी करवाना चाहो या ना करवाना चाहो पर उनके जज्बे को देख कर उन्हे सलाम करने का तो मन करता ही है, और अगर “सर्वेभवन्तु सुखिन:” की काली साया इस देश मे पड़ जाएगी तो उन बेचारों का क्या होगा? उनकी दाल रोटो कैसे चलेगी, वो बेरोजगार होंगे की नहीं, आप ही बताइये ?
और एक बात जो दिल मे कौंधती है की, हमारे देश मे( हमारे देश मे ही क्यूँ, बल्कि पूरे विश्व मे ) कम से कम आधी से जायदा तादात तो राहजनी , चोरी, डकैती, लूट, घुसखोरी जैसा महान और नेक काम करके अपना तथा अपने घर वालों का पेट भरते हैं, उनका क्या होगा ? और तो और यदि ऐसे मे चारों तरफ शांति ही शांति छा जाएगी, चारो तरफ अमन चैन का साम्राज्य हो जाएगा, तो ऐसे नीरव वातावरण मे हमारे देश भक्त जो इन राहजनी , चोरी, डकैती, लूट, घुसखोरी से हमे मुक्त करने का बिडा उठाए हुए है उन उन सब का क्या होगा ? उन्हे अपना जीवन ही व्यर्थ नजर आने लगेगा। इसलिए सिर्फ अपनी ही नहीं बल्कि इतने बड़े कार्यो की भी सोंचिए और उनके साथ मिल के चलिये “सर्वेभवन्तु दुखिन:” ।
और जब एक्सीडेंट, मारपीट, राहजनी , चोरी, डकैती, लूट, घुसखोरी बलात्कार आदि नहीं रहेगे तो फिर मीडिया का घरखर्च कैसे चलेगा, यही सब दिखाना तो उनकी आमदनी का जरिया है, वो तो हमेशा भगवान से कामना करते रहते हैं की हादसे कभी बंद ना हो ताकि उनकी बिक्री बढ़ती रहे, और आप हैं की “सर्वेभवन्तु सुखिन:”के कारण उनके भी पेट मे लात मारने पर तुले हैं? देश मे कोई भी हादसा हुआ नहीं की उनकी स्पीड देखने वाली होती है। सब्जी वाले छोटे लोग क्या जाने समान बेचना क्या होता है, कोई उनसे सीखे की न्यूज़ कैसे बेचना है (“सबसे पहले इस हादसे की खबर आप तक आजतक लाया है”) ये होता है तरीका । हादशा बताना -दिखाने से पहले वह अपनी ठेकेदारी उस हादसे पर जाहीर करते हैं, उसके बाद ही वह हदशा बताते हैं। मै तो कहता हूँ की सरकार को चाहिए की अब हर तरह के हादसे खबरों का ठेकाकरण कर दे । जैसे बलात्कार का ठेका एनडीटीवी, राहजनी का इंडिया टीवी,चोरी ibn7 को, डकैती आज तक को आदि आदि। खैर, बेचारे बहुत मेहनत करते है, हादसे से ज्यादा हादसे को बेचने पर ध्यान रहता है। क्या आप ऐसे महान और परिश्रमी लोगो के काम को बंद कराना चाहते हो? हजारो लोगो को बेरोजगारी का कफन उढ़ाना चाहते हो? “सर्वेभवन्तु दुखिन:” का ही सहारा है ।

“सर्वेभवन्तु सुखिन:” के कारण जब सब सुखी , निरोगी हो जाएंगे तो उन महंगे अस्पतालो का क्या होगा जिनका एक मात्र काम है प्राणी मात्र की सेवा, जिनमे धनी व्यक्तियों को सुंदर, स्वस्थ, सुडौल, बनाने का जिम्म लिया जाता है (गरीबो को खाली दावा ही मिल जाए बहुत है) तब फिर ऐसे मे उनके साथ जुड़े डाक्टर्स, दावा कंपनीय, दावा बेचने वाले मेडिकल स्टोर्स, केमिस्ट क्या ये सब चाहेंगे “सर्वेभवन्तु सुखिन:”।
ऐसा ही हाल राजनीत का है, विपझ तो चाहेगा ही की लोग दुखी रहें उनके कष्टो मे उत्तरोकतार वृद्धि हो, जिसे विपझ उनके दुखों को समय समय पर आंदोलनो के माध्यम से हवा देते रहें, जिसे लोगो को अपने दुखी होने का एहसास होता रहे, दूसरी तरफ लोग उन्हे अपना सबसे बड़ा शुभ चिंतक समझे । देखा जाए तो हर क्षेत्र मे, किसी न किसी के दुखी रहने मे किसी ना किसी का सुख निहित है, कारखानो मे यदि मजदूर सुखी और संतुष्ट हो जाए तो मजदूर नेताओ का क्या होगा ? कलेजो मे छात्र संतुष्ट हो जाए तो छात्र असन्तोष्ठ को हवा कौन देगा ? तथा छात्रों के नाम पर हड़ताल, मारपीट, तोड़ फोड़ कौन करवाएगा ? कार्यालयों मे यदि बाबू अपनी सैलरी से ही संतुष्ट हो जाए तो फिर आपकी फाइल को एक टेबल तक जाने मे सालों साल लग जाएंगे इस लिए उनका दुखी रहना उनके भी हित मे है और आपके भी हित मे है।
निष्कर्ष यही है की संसार मे सुख ही संतोष को जन्म देता है और संतोष आराम तलबी उपजाती है और आराम तलबी से अलास्य, कमजोरी, स्वस्थ्य संबंधी परेशानियाँ आदि उपजीत होते हैं। इसलिए सुख का सीधा संबंध मनुष्य मे पैदा होने वाली बीमारियों से है, कहने का तात्पर्य यह की जब सुख मनुष्य के लिए इतना ही घातक हो सकता है तो फिर आप किस आधार कह सकते है “सर्वेभवन्तु सुखिन:” इसी से कहता हूँ यदि अपना, समाज का तथा देश का भला चाहते हो और देश को आगे बढ़ता देखना चाहते हो तो आज से ही कहना सुरू कर दीजिये “सर्वेभवन्तु दुखिन:” ।

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